सीमा विवाद के बीच आक्रामक हो रहे चीन पर कैसे कसेगी नकेल;भारत

Todaysnews11;नई दिल्ली : चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद का अभी तक कोई स्थायी हल नहीं निकलता दिख रहा है। पिछले महीने के अंत में भारत-चीन सीमा मामलों पर डिप्लोमेटिक वर्किंग मेकेनिज्म की 31वीं बैठक में भी कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। सर्दिया आने को हैं, ऐसे में एक बार फिर से हमारे सैनिक हिमालय की ठंडी चोटियों पर चीनी सेना पीएलए के साथ आमने-सामने की टक्कर के लिए तैयार हैं। दूसरी तरफ आम आदमी का मानना है कि सेना की महत्वपूर्ण तैनाती से हम चीन के नापाक इरादों को नाकाम करने में सक्षम हैं। हालांकि, सीमा पर तल्खी के बीच चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है। चीन की तरफ से लद्दाख में सैन्य ठिकानों को मजबूत करने का काम जारी है। इसके अलावा अरुणाचल सीमा पर गांवों को बसाने में व्यस्त है। ऐसे में भारत के सामने चीन के साथ ही पाकिस्तान की भी चुनौती है।सीमा पर चालबाजी के साथ ही चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति को कमजोर करने के उद्देश्य से कई अन्य काम भी शुरू किया है। बीजिंग की तरफ से जियो इकोनॉमिक इनिशिएटि के रूप में प्रचारित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और मैरीटाइम सिल्क रोड जैसी योजनाओं ने भारत में ‘रणनीतिक घेराबंदी’ का डर पैदा कर दिया था। हालांकि ये डर निराधार नहीं थे, लेकिन दुर्भाग्य से इसे हवा में तिनके के समान नजरअंदाज कर दिया गया। इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने लेख में रणनीतिक मामलों के जानकार और पूर्व नेवी चीफ अरुण प्रकाश का कहना है कि पड़ोस में अनिश्चितता और दुनिया भर में अस्थिरता के कारण, भारत को अपना क्षेत्रीय प्रभुत्व बनाए रखने के लिए कुशल शासन कौशल की आवश्यकता है।
मालदीव ने 2012 तक, एक चीनी कंपनी के पक्ष में एक भारतीय फर्म के साथ एक प्रमुख एयरपोर्ट के आधुनिकीकरण कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर दिया था। हमारे पड़ोसी देश मालदीव में ‘इंडिया फर्स्ट’ की भावना पिछले एक दशक के दौरान धीरे-धीरे एक घोषित ‘भारत को बाहर करो’ अभियान में बदल गई। इसी तरह, अगस्त में, लोकप्रिय बांग्लादेशी भावनाओं की एक घोर गलत व्याख्या ने पीएम शेख हसीना को सत्ता से बाहर कर दिया। भारत के लिए यह हैरानी के साथ ही अपने एक पड़ोसी देश की स्थिति चिंताजनक है।
पड़ोसी देश नेपाल और श्रीलंका के साथ भारत के संबंध उतने बेहतर नहीं हैं। इसमें दो सवालों को उठाया गया है कि भारत, अपनी बुद्धिमान और ‘विश्वगुरु/ विश्व मित्र’ की छवि के बावजूद, अभी भी अपने पड़ोसियों की तरफ से ‘बड़ा भाई/बुली’ के रूप में क्यों माना जाता है? दूसरा क्या हम अपने पड़ोसी राजधानियों में विभाजनकारी घरेलू राजनीति और अनियंत्रित उत्तेजक बयानों के प्रतिकूल प्रभाव को कम कर रहे हैं। दोनों का उद्देश्य भारतीय मतदाताओं को प्रभावित करना है? इस बीच विकसित भारत की रूपरेखा पहले से ही दिखाई दे रही है। दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश और एक परमाणु हथियारों से लैस सैन्य शक्ति, भारत 2047 तक सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनने के लिए तैयार है। एक तकनीकी छलांग इसे एक मैन्युफैक्चरिंग पावरहाउस में बदल सकती है। उम्मीद है, 2047 तक, विवेकपूर्ण आर्थिक प्रबंधन बड़े पैमाने पर गरीबी और बेरोजगारी की चुनौतियों को दूर कर देगा। साथ ही स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा में सुधार करेगा।
भारत के परमाणु हथियारों से लैस पड़ोसी, चीन और पाकिस्तान, क्षेत्रीय महत्वकांक्षाओं को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके साथ ही ये बार-बार उकसावे की स्थिति पैदा करते हैं। भले ही चीनी सैन्य और तकनीकी प्रभुत्व का भूत मंडरा रहा हो, एक बहुत बड़ा, आर्थिक और रणनीतिक भेद्यता हमारे बढ़ते व्यापार घाटे (वर्तमान में, $85 अरब) में छिपी हुई है। इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, फार्मास्यूटिकल्स और अन्य वस्तुओं के आयात पर भारत की बढ़ती निर्भरत चीन के संबंध में अपने रणनीतिक गतिविधि के लिए महत्वपूर्ण रूप से सीमित कर रही है। दूसरा, रक्षा आयात पर हमारी निरंतर निर्भरता हमारे पोषित ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ के साथ-साथ सैन्य क्षमताओं पर एक गंभीर बाधा है।

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