Diabetic Retinopathy एक डायबीटीज से संबंधित समस्या है जो समस्या आप की आंखों को प्रभावित करती है। इस समस्या का मुख्य कारण रेटिना में मौजूद रोशनी से सेंसिटिव टिश्यू की रक्तसंबंधी नसों (ब्लड वेसल्स) को होने वाले हानि है।शुरुआती चरण में, डायबिटिक रेटिनोपैथी कोई लक्षण नहीं दिखा सकती है, लेकिन धुंधली दृष्टि से लेकर अंधापन तक सभी प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकती है।
Diabetic Retinopathy दो प्रकार के होते है।
1.प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (NDR)
2.नॉन प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी (NPDR)
आपको निम्नलिखित लक्षण महसूस हो सकते हैं –
1.काली बिंदियां तैरती दिखना (फ्लोटर्स): आपकी आंखों के अंदर की जेल में छोटे-छोटे धब्बे बन जाते हैं और हिलते हुए नजर आते हैं।
2.धुंधली नज़र: चीजें साफ न दिखना, जैसे सब धुंधला हो गया हो।
3.रंग न पहचान पाना: रंग सही न दिखना, फीके या अलग प्रतीत होना।
4.रात में कम दिखना: कम रोशनी में चीजें न पहचान पाना या बिल्कुल दिखना बंद हो जाना।
5.पूरी तरह दिखना बंद हो जाना: आंखों की रोशनी चली जाना।
6.हिलती हुई नज़र: देखने में उतार-चढ़ाव आना, चीजें हिलती हुई दिखना।
7.आंखों में कुछ नहीं दिखना: आंखों के किसी हिस्से में देखने की शक्ति बिल्कुल न होना।
Diabetic Retinopathy के कारण
1.हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी और भी मेडिकल कंडिशन्स डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा बढा देती है।
2.गर्भावस्था वह समय है जिसके दौरान एक महिला के गर्भाशय (गर्भ) के अंदर एक या एक से अधिक संतानें विकसित (गर्भावस्था) होती हैं। तब भी इसका खतरा रहता है।
3.कभी कभी डायबिटिक रेटिनोपैथी जैसे स्थिती वंशपरंपरागत भी हो सकती है।
4.बहुत ज्यादा बैठने और लेटने वाली जीवनशैली जिसमें बहुत कम या कभी भी व्यायाम नहीं होता। तब भी डायबिटिक रेटिनोपैथी का खतरा बढता है।
5.अपने खान पान की वजह से भी बहुत सारी बिमारिया होती है जिसमे डायबिटिक रेटिनोपैथी भी सामील है।
अगर किसी व्यक्ती को मोटापा हो तो उन्हे भी डायबिटिक रेटिनोपैथी इससे खतरा हो सकता है।डायबिटिक रेटिनोपैथी के विकसित होने की संभावना काफी ज्यादा होती है. इसके अलावा स्क्रीनिंग या नियमित आई टेस्ट की कमी भी इसका एक कारण होती है.लेकिन कई बार इसकी वजह से मरीज अपनी आंखों की रोशनी पूरी तरह से खो सकता है.
Diabetic Retinopathy के इलाज
डायबिटिक रेटिनोपैथी का उपचार लेजर से किया जाता है। इस उपचार विधि के दौरान रेटिना के पीछे की नई रक्त वाहिकाओं के विकास के इलाज के लिए और आंखों में रक्त और द्रव के रिसाव को रोकने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, आंखों में इंफ्लेमेशन को कम करने या आंखों के पीछे नई रक्त वाहिकाओं को बनने से रोकने के लिए आंखों में ल्यूसेंटिस, अवास्टिन जैसे इंजेक्शन लगाए जाते हैं। दृष्टि स्थिर हो जाने पर इंजेक्शन लगाना बंद कर दिया जाता है। लेजर और इंजेक्शन प्रक्रिया से इलाज संभव नहीं होता है, तो व्रिटेक्टमी नामक सर्जरी से इलाज किया जाता है।
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